Saturday 28 April 2018


।।  राम राम सा ।।
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सभी फेसबुक प्रेमियो  को राम राम सा और अभी मारवाड़ मे शादी-विवाह का सीजन चल रहा है अब शादियों में पुराने रीति रिवाज तो एकदम लुप्त होने के कगार पर है पहले बारात तीन दिन तक रुकती थी  और अब सिर्फ एक ही दिन मे काम पुरा हो जाता  है वह तो समय की आवश्यकता है तो सही ही है परन्तु जो खास बदलाव हुआ है वह भोजन और पहनावा  वह समाज और संस्कृति को नस्ट कर रहा है
पहले बारातियो के खाने  मे लापसी, देसी घी का चूरमा , सिरा, दाल ,कड़ी, चंणा, रोटी ही मुख्य भोजन एवम नास्ते मे खिसड़ी बनायी जाती थी जो परिवार वाले मिलकर बना देते थे अभी महंगे हलवाई लाकर लोग शादी मे आधुनिक प्रचलन के तहत विभिन्न प्रकार की  मिठाईया बेसन और तेल से तली हुई चीजे  बनाते है जो शरीर के लिये  बहुत ही हानिकारक है एक दुसरे की होड लगाकर शादी के खर्चे को बडावा दे रहे हैं  पहनावे मे वर और वधु अपने अपने पारम्परिक पहनावे  को छोड़कर नये फैसन के कपड़े सिलवाते है उनसे फिजूल खर्ची भी कह सकते हैं और उनसे  भी ज्यादा अपनी संस्कृति का भी नाश होता है   और ये बदलाव पांच छह साल से कुछ ज्यादा ही हो रहा है अब तो बारात खड़े खड़े जाओ, खड़े खड़े खाओ और खड़े खड़े ही वापस आओ  अपनी परम्परागत संस्कृति को भूलना भी समाज के लिए बहुत ही हानिकारक है

आजकल शादी विवाह समारोह एक सामाजिक तथा परिवारिक प्रोग्राम नहीं रह कर लोगों का शक्ति प्रदर्शन का जरिया रह गई है आज शादी विवाह में आदमी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है चाहे वह किसी से कंपटीशन के चक्कर में सोना ज्यादा खरीद रहा हो या ज्यादा मेहमान बुलाने की कंपटीशन हो या फिर दिखावा सब में शक्ति प्रदर्शन हो रहा है और इसमें परिवारिक लोगों को कम महत्व देकर नेता और पैसे वालों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है
पड़ोसी और गरीब की शादी में कोई जाना नहीं चाहता

खर्चीले विवाह हमें दरिद्र बनाते हैं।

भारत में व्यक्ति अपने जीवन भर की कमाई का 20 % शादी-विवाहों में खर्च करता है।

भारत में 3 लाख रुपये हैे प्रति विवाह औसत खर्च

जरा हटकर लेख -

खर्चीले विवाहों का औचित्य ?

        वर्तमान में मुझे विवाह की परिभाषा बदलती हुई नजर आ रही है। अब विवाह का अर्थ वि + वाह ! पर आधारित हो गया है अर्थात विवाह वही जिसे देखकर लोग कहें - वाह वाह ! वाह वाह !
        यह स्थिति कमोवेश हर वर्ग में देखने को मिल जाती है । आपके पास पर्याप्त अर्थ ( धन ) की व्यवस्था हो या न हो , वाहवाही जरूरी है। इसके लिए हम अपनी सामर्थ्य के बाहर जाकर भी आयोजन करने से पीछे नही हटते हैं।
       बस यहीं से शुरू होता है -खर्चीली शादियों का चलन , जो हमारे झूटे दर्प को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । यह कुछ समय के लिए हमारी " नाक " को बड़ी जरूर कर देता है लेकिन बाद में देखा देखी करने वालों की " नाक " कटवाने से भी पीछे नही रहता है और कभी कभी तो हमारी भी।
      खर्च करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसलिए औचित्य - अनोचित्य की बात करना बेमानी है । हम सब यही कहेंगे - खर्चीली शादी का कोई औचित्य नहीं पर जब अपना वक्त आएगा तो वही करेंगे जो अन्य लोग करते आए हैं । बराबरी तो कोई भी, कभी भी किसी भी क्षेत्र में नही कर सकता लेकिन बढ़ - चढ़ कर , करने का प्रयास जरूर करता है। क्योंकि आज का  दौर दिखावे का और मनमर्जी का है। इस दौर में जागरूक और मितव्ययी व्यक्ति भी अपने परिजनों और अपनी प्रतिष्ठा के दवाब में , वह सब करता है जिसे हम अनुचित और अनावश्यक ठहराते हैं ।
      जो हो रहा है वह आगे भी होता रहेगा । मैं यहां विवाह में होने वाली फिजूलखर्ची के बारे में कुछ नही लिखना चाहता क्योंकि मैं जानता हूँ उपदेश देने सरल है पर उन पर अमल करना नामुमकिन।
        हां , एक बात जरूर कहना चाहता हूँ ,जिसे हम सब अपना सकते हैं और इसके लिए समारोह में शामिल होने गये अपने परिजनों / मित्रों को भी प्रेरित कर सकते हैं । वह यह - प्लेट में खाना उतना ही लें जितना जरूरी हो। समारोहों में अनेक स्टॉल होते हैं उनमें से भी वही लें जो आपके स्वास्थ्य के लिए हितकर हों । पेटू न बनें ।
       मैने अक्सर उन लोगों को देखा है - जो अपनी प्लेट में सब चीजें बहुतायत में उंडेल लेते हैं और फिर उन्हें ना खाने की स्थिति में डस्टबिन में डाल देते हैं । हमारी इस खराब आदत को यदि हम बदल सकें तो यही हमारे लिए खर्च बचाने में बड़ा योगदान होगा। कम से कम हम खुद तो आत्म सन्तोष लेकर लौटेंगे ही।

नरेंद्र सोलंकी
                

Continue

शादी विवाह समारोह
आजकल शादी विवाह समारोह एक सामाजिक तथा परिवारिक प्रोग्राम नहीं रह कर लोगों का शक्ति प्रदर्शन का जरिया रह गई है आज शादी विवाह में आदमी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है चाहे वह किसी से कंपटीशन के चक्कर में सोना ज्यादा खरीद रहा हो या ज्यादा मेहमान बुलाने की कंपटीशन हो या फिर दिखावा सब में शक्ति प्रदर्शन हो रहा है और इसमें परिवारिक लोगों को कम महत्व देकर नेता और पैसे वालों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है
पड़ोसी और गरीब की शादी में कोई जाना नहीं चाहता

फिजूल खर्चे और बदहाली में इंसान

सत्यम सिंह बघेल(आलेख)

सामाजिक आयोजनों में होने वाला फिजूल खर्च समाज को अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहा है, यह पूरे समाज में कैंसर जैसी घातक बीमारी की भांति फैला हुआ है जो दिन व दिन बढ़ते ही जा रहा है, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है । हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार हमेशा से व्यक्ति की आय में बचत करना रहा है, जो व्यक्ति की भविष्य की सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्र की संपदा के प्रति सम्मान माना जाता है। एक जमाने में लाख रुपया अनेक लोगों के जीवन का लक्ष्य होता था और आज करोड़ों की बातें इस तरह की जाती है मानो वह मात्र सौ रुपया है। आज सामान्य जीवन में कंजूसी को अपशब्द की तरह बना दिया गया है। सबसे घातक बात तो यह है कि किफायत एवं कम दाम में अर्थात सोच समझकर वाजिब मूल्य में आवश्यक वस्तु खरीदना है परंतु इसे पुराना विचार कहकर आधुनिकता के खिलाफ खड़ा किया जाने लगा है । हमने अपने बच्चों को प्यार के नाम पर उन्हें बेहिसाब रुपए जेब खर्च के लिए देना शुरू कर दिए हैं और उनसे हिसाब मांगने को तो गुनाह का दर्जा दे दिया गया है। पहले परम्परा थी, जब जेब खर्च का हिसाब मांगा जाता था जो एक स्वस्थ बात होने के साथ धन का मूल्य समझाने की कोशिश थी। एक तरह से पैसा बचाना, पैसा कमाने की तरह है जैसे क्रिकेट में चुस्त फील्डर रन बचाता है जो उसके रन बनाने के खाते में जोड़कर उस खिलाड़ी का मूल्यांकन होता है। एक बार के क्रिकेट में एकनाथ सोलकर शॉर्ट मिड ऑन पर खड़े रहकर जमीन पर गिरने के एक इंच पूर्व ही कैच कर लिए थे, जाने प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटरमण को मिले विकेट में एकनाथ सोलकर का सहयोग कितना महत्वपूर्ण था। इसी तरह जीवन में रुपया बचाने का महत्व है। फिजूल खर्ची को तड़क-भड़क और दिखावे की जीवन शैली का हिस्सा बना दिया गया है। रेस्त्रां में आवश्यकता से अधिक भोजन के ऑर्डर देने को फैशन का हिस्सा बनाकर राष्ट्रीय संपत्ति का अपव्यय बना दिया गया है। वहीँ समाज का उच्च एवं संपन्न वर्ग अपने समस्त आयोजनों को बढ़ा-चढ़ाकर सम्पन्न करता है । निश्चित ही इससे समाज का मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । वह भी कर्ज की सूली पर चढ़कर उसका अनुसरण करने लगता है और अपना सर्वस्व मिटा देता है । हम देखते हैं कि नवजात शिशु के स्वागत में लोग इतना बड़ा समारोह आयोजित कर देते हैं कि वह बच्चा जन्मजात क़र्जदार बन जाता है। शादीओं में लोग इतना खर्च कर देते हैं कि आगे जाकर उनका गृहस्थ जीवन चौपट हो जाता है। मृत्यु-भोज का कर्ज़ चुकाने में ज़िंदा लोगों को तिल-तिलकर मरना होता है। यह बीमारी आजकल पहले से कई गुना बढ़ गई है और बढ़ते ही जा रही है, यह घातक बीमारी समय के साथ-साथ अपनी जड़े मजबूत करते जा रही है । सामाजिक आयोजनों में बढ़ते फिजूल खर्चे को देखकर तो ऐसा लगता है मानों लोगों में खर्चे करने की कोई प्रतियोगिता चल रही है, देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई प्रतिस्पर्धा है । लोग देखा-दिखी में अपनी औकात से ज्यादा ही खर्च कर देते हैं कभी-कभी तो लोग अपनी जमीन, व्यापार, संपत्ति बैचकर, गिरबी रखकर अपने आयोजन में खर्च कर देते हैं । कभी कभी तो लोग कर्जा लेकर आयोजनों में खर्च कर देते हैं और इतना अधिक खर्च कर देते हैं कि एक-दो पीढ़ी तक उस कर्ज से मुक्ति पाना संभव ही नही होता है । विवाह, मृत्यु भोज, दहेज, कपड़ा प्रथा, विवाह में शराब, आर्केस्ट्रा, साज-सज्जा इत्यादि में लोग लाखों-करोड़ों खर्चा करते हैं इससे क्या मिलता है, क्या यह सब खुशियाँ मनाने के लिए किया जाता है, अगर यह सब खुशियाँ मानाने के लिए किया जाता है तो फिर ऐसी खुशियाँ किस काम की जिसमे एक दिन तो ख़ुशी मना ली फिर उसी ख़ुशी के लिए सारा जीवन रोते रहे । यह सब खुशियाँ मनाने के लिए नही वरन दिखावे के लिए किया जाता है । लोग सामाजिक आयोजनों में किये जाने वाले फिजूल खर्चे को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखने लगे हैं । जो जितना अधिक खर्चा करता है समाज में वह व्यक्ति उतना ही अधिक चर्चित और सम्मानित व्यक्ति बन जाता है, इसलिए व्यक्ति अपने किसी भी आयोजन में बढ़-चढ़कर खर्चता है । आजकल निमंत्रण-पत्रों के साथ प्रेषित तोहफ़ों पर ही लाखों रू. खर्च कर दिए जाते हैं। यह शेख़ी का जमाना है। हर आदमी अपनी तुलना अपने से ज्यादा मालदार लोगों से करने लगता है। दूसरों की देखा-देखी लोग अंधाधुंध खर्च करते हैं। इस खर्च को पूरा करने के लिए सीधे-सादे लोग या तो कर्ज़ कर लेते हैं या अपनी ज़मीन-जायदाद बेच देते हैं और तिकड़मी लोग घनघोर भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं। येन-केन-प्रकरेण पैसा कमाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। अगर ये सब दाव-पेच भी फेल हो जाएं तो वे लड़की वालों पर सवारी गाँठते हैं। अपनी हसरतों का बोझ वे दहेज़ के रूप में वधू-पक्ष पर थोप देते हैं। वहीँ समाज की सोच भी ऐसी ही है, आज चहुंओर फिजूल खर्ची को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसे आधुनिकता कहने की गलती भी की जा रही है। टीवी में मैंने एक सीरियल देखा 'आइना दुल्हन का' इस सीरियल में एक मध्यम वर्ग परिवार की एक कन्या को दादी ने अतिरिक्त लाड़-प्यार से पालकर फैशन परस्त एवं फिजूल खर्ची को शान समझने वाली लड़की बना दिया है। वह अपने विवाह पर अपने मध्यम वर्गीय माता-पिता पर दबाव बनाकर इतना खर्च कराती है कि उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ती है। उसके द्वारा दहेज में जबरन ली गई कार की यह प्रतिक्रिया है कि उसकी ननद का विवाह दहेज में कार नहीं लाने के कारण टूट जाता है। उसकी छोटी बहन जिसे माता-पिता ने किफायत के मूल्यों में ढाला है, वह अपने विवाह सादगी से करती है तो उसका निठल्ला पति उसे ताने देता रहता है गोयाकि दहेज की एक कार किस तरह तीन घरों को तोड़ देती है तथा एक दादी का अतिरिक्त लाड़-प्यार एवं बेटी के अव्यवहारिक मूल्य तीन परिवारों को दिवालियेपन की कगार पर पहुंचा देता हैं। फिजूल खर्ची झूठी शान शौकत की एक घटना परिवार के तमाम रिश्तों में दरारें डाल देती हैं और ऐसी ही घटना हमारे वास्तविक जीवन में एवं समाज के अन्दर देखने को मिलती हैं, जो कि यह प्रथा बहुत गलत है । हमें ऐसे अनुसरण करने वालों को रोकना होगा तथा सर्वस्व विनाश से उनको बचाना होगा । वैसे आजकल देखने-सुनने को मिल रहा है कि कुछ सामाजिक संगठन इन सामाजिक आयोजनों में होने वाले फिजूल खर्चों में प्रतिबन्ध लगाने के लिए खुद के नियम-कानून बना रहे हैं और शादी या अन्य आयोजनों के लिए लोगों की आमदनी और खर्चे का अनुपात तय कर रहे हैं, लेकिन यह सुझाव बिल्कुल बेकार सिद्ध होगा, जैसा कि चुनाव-खर्च का होता है। लेकिन हाँ आयोजनों में अतिथियों की संख्या जरूर सीमित की जा सकती है और परोसे जानेवाले व्यंजनों की भी संख्यां में कमी जरुर की जा सकती है, इस प्रावधान का कुछ असर जरूर होगा लेकिन सबसे ज्यादा असर इस कदम का होगा कि कानून द्वारा इन आयोजनों में किये जाने वाले खर्चे की समय-सीमा तय कर दी जाये और जहां भी क़ानून के विरूद्ध लाखों-करोड़ों का खर्च दिखे, सरकार वहीं शादी या अन्य आयोजन के मौके पर छापा मार दे। आयोजन में शामिल लोगों को गिरफ्तार करके उनसे आयोजन का हिसाब माँगें कि वे यह पैसा कहां से लाए। देश में अगर ऐसे चालीस-पचास स्थान पर ही छापे पड़ जाएं तो शेष फ़िजूलख़र्च लोगों के पसीने छूट जाएँगे। साथ ही समाज को इसके लिए जागरूक करने की आवश्यकता है कि यह सिर्फ मितव्ययता है, हमारे आर्थिक एवं सामाजिक विनाश का कारण है और कुछ नही । हमे फिजूल खर्चे को रोकने के लिए ऐसा मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता है कि शान भी बनी रहे और विनाश से बचा जा सके । लोगों को नयी प्रेरणा देनी होगी कि फिजूलखर्ची के अनुसरणों से हम अपना बचाव कैसे कर सकते हैं । समाज में समय रहते ही इस मितव्ययता पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है, इसके लिए समाज को और समाज के अन्य घटकों को जागरूक करने एवं उन्हें खुद को जागरूक होने की आवश्यकता है । आज के समय में सादा जीवन उच्चविचार की राह पर चलना अतिआवश्यक है ।

32 lines

*दिल को  छू लेने वाली ऐसी  32-लाइनें*
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1. *क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं*।

2. *ज़माना भी अजीब हैं, नाकामयाब लोगो का मज़ाक उड़ाता हैं और कामयाब लोगो से जलता हैं* ।

3. *इज्जत किसी आदमी की नही जरूरत की होती हैं. जरूरत खत्म तो इज्जत खत्म* ।

4. *सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा*. *आपसे हर मसले पर बात करेगा लेकिन*
*धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा*।

5. *हर किसी को दिल में उतनी ही जगह दो जितनी वो देता हैं.. वरना या तो खुद रोओगे, या वो तुम्हें रूलाऐगा* ।

7. *अगर जिंदगी में सफल होना हैं तो पैसों को हमेशा जेब में रखना, दिमाग में नही* ।

8. *इंसान अपनी कमाई के हिसाब से नही,अपनी जरूरत के हिसाब से गरीब होता हैं* ।

9. *जब तक तुम्हारें पास पैसा हैं, दुनिया पूछेगी भाई तू कैसा हैं* ।

10. *हर मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता हैं ऐसी कोई भी मित्रता नही जिसके पीछे स्वार्थ न छिपा हो* ।

11. *दुनिया में सबसे ज्यादा सपने तोड़े हैं इस बात ने,कि लोग क्या कहेंगे* ।

12. *जब लोग अनपढ़ थे तो परिवार एक हुआ करते थे, मैने टूटे परिवारों में अक्सर पढ़े-लिखे लोग देखे हैं* ।

13. *जन्मों-जन्मों से टूटे रिश्ते भी जुड़ जाते हैं बस सामने वाले को आपसे काम पड़ना चाहिए* ।

14. *हर प्रॉब्लम के दो सोल्युशन होते हैं..*
*भाग लो.. (run away)*
*भाग लो..(participate)*
*पसंद आपको ही करना हैं* ।

15. *इस तरह से अपना व्यवहार रखना चाहिए कि अगर कोई तुम्हारे बारे में बुरा भी कहे, तो कोई भी उस पर विश्वास न करे* ।

16. *अपनी सफलता का रौब माता पिता को मत दिखाओ, उन्होनें अपनी जिंदगी हार के आपको जिताया हैं* ।

17. *यदि जीवन में लोकप्रिय होना हो तो सबसे ज्यादा ‘आप’ शब्द का, उसके बाद ‘हम’ शब्द का और सबसे कम ‘मैं’ शब्द का उपयोग करना चाहिए* ।

18. *इस दुनिया मे कोई किसी का हमदर्द नहीं होता, लाश को शमशान में रखकर अपने लोग ही पुछ्ते हैं.. और कितना वक़्त लगेगा* ।

19. *दुनिया के दो असम्भव काम- माँ की “ममता” और पिता की “क्षमता” का अंदाज़ा लगा पाना* ।

20. *कितना कुछ जानता होगा वो शख़्स मेरे बारे में जो मेरे मुस्कराने पर भी जिसने पूछ लिया कि तुम उदास क्यों हो* ।

21. *यदि कोई व्यक्ति आपको गुस्सा दिलाने मे सफल रहता हैं तो समझ लीजिये आप उसके हाथ की कठपुतली हैं* ।

22. *मन में जो हैं साफ-साफ कह देना चाहिए Q कि सच बोलने से फैसलें होते हैं और झूठ बोलने से फासलें* ।

23. *यदि कोई तुम्हें नजरअंदाज कर दे तो बुरा मत मानना, Q कि लोग अक्सर हैसियत से बाहर मंहगी चीज को नजरंअदाज कर ही देते हैं* ।

24. *संस्कारो से भारी कोई धन दौलत नही है* ।

25. *गलती कबूल़ करने और गुनाह छोङने में कभी देर ना करना, Q कि सफर जितना लंबा होगा वापसी उतनी ही मुशिकल हो जाती हैं* ।

26. *दुनिया में सिर्फ माँ-बाप ही ऐसे हैं जो बिना स्वार्थ के प्यार करते हैं* ।

27. *कोई देख ना सका उसकी बेबसी जो सांसें बेच रहा हैं गुब्बारों मे डालकर* ।

28. *घर आये हुए अतिथि का कभी अपमान मत करना, क्योकि अपमान तुम उसका करोगे और तुम्हारा अपमान समाज करेगा* ।

29. *हँसते रहो तो दुनिया साथ हैं, वरना आँसुओं को तो आँखो में भी जगह नही मिलती* ।

30. *दुनिया में भगवान का संतुलन कितना अद्भुत हैं, 100 कि.ग्रा.अनाज का बोरा जो उठा सकता हैं वो खरीद नही सकता और जो खरीद सकता हैं वो उठा नही सकता* ।

31. *जिनमें संस्कारो और आचरण की कमी होती हैं वही लोग दूसरे को अपने घर बुला कर नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं* ।

32. *अगर आप किसी को धोखा देने में कामयाब हो जाते हैं तो मान कर चलना की ऊपर वाला भी आपको धोखा देगा क्योकि उसके यहाँ हर बात का इन्साफ जरूर होता है* ।

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     *उम्मीद करता हूँ की आप को ये
  खूबसूरत लाइन जरूर पसंद आयेगी
   औरआप की अंदरुनी खूबसूरती में
      हंसमुखी निखार आये ,बस यही
प्रार्थना करता हूँ  , हँसते रहिये , हँसाते
         रहिये* ।
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Tuesday 24 April 2018

"जूठा गुड़"

"जूठा गुड़"
गुरू की वाॅल से काॅपीड
एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था।
एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की शादी में शामिल होने से बचना..
लेक‌िन घर परिवार का दबाव था सो जाना पड़ा।
उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर मैं गांव को जाने बाली रोड़ पर बैठा हुआ था, हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था , पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी कि तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी  आकर रूकी,
और उसमें से एक वृद्ध उतरे,अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।
वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये, पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी, उसमे गुड़ भरा हुआ था, अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया, सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने मांबाप को घेर लेते हैं, कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी, वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।
कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई,इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता,
हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था
वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे,मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े।
मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला अंकल जी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया, क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड क्यों खाया ??
उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।
जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।
मैं अब भी नहीं समझा अंकल जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???
   वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था, परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया। इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था, भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा, और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।
तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ,यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था,मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था, मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई, मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया। मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।
मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी, मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश  में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था, एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।
शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था, वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।
कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने, गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई, मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया।
           और वही सो गया, सुबह काम तलासने निकल गया, आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया। कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।
इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई,मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया, इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई, जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था,
मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा,और बहुत सोचता रहा, फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई, दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया,
शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ, जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया , मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डालकर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ,
मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ , परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।
मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे, समझ गये अब तो तुम,
मैंने सिर हाँ में हिलाया, वे चल पड़े,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई , मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला,बापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।
सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।
उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।
घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि.....,
गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है,
जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं।
इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।
ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।
*।। जय गौ माता।।*